पाली, 25 अगस्त।पर्युषण पर्व के पावन अवसर पर साध्वी श्री काव्यलता जी के सान्निध्य में सोमवार को जप दिवस का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मंगलमय नवकार मंत्र से हुई।
तेरापंथ कन्या मंडल की बालिकाओं ने सामूहिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया, जबकि साध्वी श्री ज्योतियशा जी ने प्रेरक कथा सुनाकर श्रोताओं को प्रभावित किया। साध्वी श्री राहतप्रभा जी ने जप साधना की महत्ता बताते हुए कहा कि इससे आंतरिक शांति, ऊर्जा और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है। इसी क्रम में साध्वी श्री सुरभिप्रभा जी ने “जप लो महामंत्र नवकार” भजन प्रस्तुत कर धर्मसभा को भावविभोर कर दिया।
मुख्य प्रवचन में साध्वी श्री काव्यलता जी ने कहा कि अहिंसा ही जैन धर्म का मूल आधार है। संकल्पजा और आरंभजा हिंसा से बचना तथा मनसा, वाचा और कर्मणा से किसी को आहत न करना ही सच्चा पर्युषण साधना है। उन्होंने कहा—
“मन, दूध और वचन—ये तीन जब एक बार फट जाते हैं तो फिर पूर्ववत नहीं हो सकते। इसलिए वचनों के बाण किसी के हृदय को आहत न करें।”
उन्होंने दैनिक जीवन में होने वाली सूक्ष्म हिंसा पर भी चेताया। साध्वी जी ने उदाहरण देते हुए कहा कि सड़क पर पशुओं की अनदेखी करना, सब्ज़ियों को असावधानी से काटना, जल और वस्त्र का अपव्यय करना भी हिंसा का रूप है।
साध्वी श्री ने भगवान महावीर के अठारहवें भव का प्रसंग सुनाते हुए समझाया कि सच्ची वीरता करुणा और अहिंसा में है। इस अवसर पर श्राविका श्रीमती अरुणा लोढ़ा ने भ्रूण हत्या पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे समाप्त करने की अपील की। साध्वी श्री ने भी भ्रूण हत्या न करने का सामूहिक संकल्प दिलवाया।
कार्यक्रम के समापन पर साध्वी श्री काव्यलता जी ने समाज से तीन विशेष आग्रह किए—
प्रतिदिन कम से कम दो घंटे जप साधना करने का संकल्प लें।
जल, अन्न और वस्त्र का अनावश्यक व्यय रोकें।
मन, वचन और काया से हिंसा से बचने का प्रयास करें।
धर्मसभा में 35 अट्ठाई तपस्याओं के सामूहिक संकल्प भी लिए गए। अंत में मंगलपाठ के साथ जप दिवस संपन्न हुआ।