पाली। जिले में शुक्रवार देर रात हुए दर्दनाक बस हादसे के बाद अब प्रशासनिक लापरवाही और मानवीय संकट दोनों सामने आ गए हैं।
रोहट थाना क्षेत्र के गाजनगढ़ टोल के पास हुई इस दुर्घटना में दो मासूम बच्चों की मौत हो गई और 28 लोग घायल हुए।
लेकिन हादसे के 13 घंटे बीत जाने के बाद भी प्रशासन घायलों को सिर्फ देखता रहा खाने-पीने की व्यवस्था तक नहीं की गई।
दिव्या और सोना – रफ्तार ने छीनी मासूम जिंदगी
इस हादसे में रतलाम (मध्य प्रदेश) की 1 साल की दिव्या की मौत सिर धड़ से अलग हो जाने के कारण हुई,
जबकि खेतपालिया (मध्य प्रदेश) की 7 साल की सोना की मौत सीने में कांच घुसने से हो गई।
दोनों परिवार बेसुध हैं, और अन्य यात्री अब अस्पताल में अपनी ही बेबसी से जूझ रहे हैं।
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पब्लिक लाइव की टीम की ग्राउंड रिपोर्ट — “इलाज फ्री है, पर भूख से मर जाएंगे”
पब्लिक लाइव न्यूज़ की टीम ने बांगड़ हॉस्पिटल में मौजूद घायलों से बात की।
मजदूरों ने बताया —
> “हम लोग मजदूर हैं। हादसे में जो थोड़ी बहुत जमा रकम थी, वह बस में ही रह गई।
प्रशासन इलाज तो फ्री करवा रहा है, पर खाने-पीने के पैसे हमारे पास नहीं हैं।
अगर अस्पताल में रुके तो भूख से मर जाएंगे, इसलिए अब गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं।”
कई घायल मजदूर भूख-प्यास से बेहाल होकर बिना इलाज पूरा कराए ही
अपने गांव लौटने की जिद पर अड़े हैं — क्योंकि अब उनके पास जिंदा रहने की आखिरी उम्मीद अपने घर पहुंचने की है।
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13 घंटे में भी नहीं हुई खाने की व्यवस्था
घटना को हुए 13 घंटे बीत चुके हैं,
लेकिन प्रशासन की ओर से न पानी, न भोजन और न आर्थिक सहायता की कोई व्यवस्था की गई है।
हॉस्पिटल के बाहर घायल और परिजन जमीन पर बैठे हैं,
कुछ को तो अपने गांव लौटने का किराया जुटाने में भी परेशानी हो रही है।
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ड्राइवर फरार, यात्रियों ने लगाए गंभीर आरोप
यात्रियों का कहना है कि ड्राइवर को कई बार धीमे चलने को कहा गया,
लेकिन उसने अनसुना कर दिया।
हादसे के बाद ड्राइवर मौके से फरार हो गया,
जबकि पुलिस ने रातभर मशक्कत कर बस में फंसे यात्रियों को बाहर निकाला।
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राजस्थान में सड़क हादसों का डरावना आंकड़ा
राजस्थान में इस साल अगस्त तक 8,060 लोगों की सड़क हादसों में मौत हो चुकी है।
साल 2020 से 2024 के बीच 58,000 से अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए,
जिनमें 28,000 से ज्यादा 35 साल से कम उम्र के युवा शामिल हैं।
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सवाल जब घायल भूख से तड़पें, तब सिस्टम कहां है?
पाली हादसे ने यह सवाल फिर खड़ा कर दिया है कि
जब प्रशासन मौके पर है, तो इंसानियत कहां है?
इलाज मुफ्त है, लेकिन भूख की कीमत कोई नहीं चुका रहा।
गरीबों की मजबूरी यह है कि अब वे इलाज छोड़कर घर लौट रहे हैं,
ताकि कम से कम एक वक्त का खाना तो मिल सके।